संदेश

मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मनवा कहे आवारा बन जा...

चित्र
कभी-कभी लगता है आवारा बन जाएं | मन करता है कि उठाएं एक छोटा बैग और निकल जाएं कहीं दूर बिना किसी उद्देश्य के| बस ट्रेन के पास वाली खिड़की मिल जाए और हरे भरे खेतों अपलक निहारते हुए चलते जाएं | किसी भी स्टेशन पर उतर जाएं फिर आगे का सफर किसी ट्रक के पीछे बैठ कर पूरा करें | किसी ढ़ाबे पर अपनी क्षुधा शान्त की जाए और तारों से भरे अनंत आकाश के नीचे सो जाएं, ठंडी ठंडी हवा के साथ सुबह की पहली किरण जगाए ओस से पूरी तरह भीग चुके हों | कितना अच्छा होता अगर यह ख्वाब पूरा हो पाता | सच में यह उसके लिए किसी ख्वाब से कम नहीं जो अपनी जिंदगी के पांच महत्वपूर्ण साल एक कमरे में बिता दिए हों वह भी किसी भीड़ भरे शहर में | किसी किसी दिन तो आखों के सामने बहुत गजब की रंगीन स्वप्निल संसार बन जाता है जिसमें दूर एक पहाड़ी गांव होता है, जिसके चारो तरफ होती हैं हरी भरी वादियां और पास बह रही होती हैं मध्दम मध्दम एक पहाड़ी नदी, कल की लयात्मक ध्वनि के साथ, सूरज जैसे दिन भर की थकान मिटानें नदी के किनारे चला आया हो | जैसे-जैसे वह नीचे आ रहा है पानी में उसकी परछाहीं बड़ी हो रही है, बहते पानी में जैसे सूरज पांव पखार रह

मौसम के साथ चलें...

चित्र
मौसम परिवर्तन वैसे तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है लेकिन जब यह परिवर्तन अपने नियत समय पर नहीं होता है तो यह चिंता का विषय बन जाता है। इधर पिछले 10 से 15 वर्षो पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि मौसम का परिवर्तन कुछ कुछ असंतुलित हुआ है। गर्मी में बहुत अधिक गर्मी और सर्दी में बहुत अधिक सर्दी पड़ रही है। पूरे एशिया क्षेत्र पर इसकी मार है। कृषि विशेषज्ञ एमएस स्वामीनाथन कहते हैं कि तापमान बढ़ने से सबसे अधिक गेहूं की फसल प्रभावित हो सकती है जिसके कारण खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। भारत में 64 प्रतिशत जनसंख्या इससे पेट भरती है। आज मौसम में एक और बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है वह है मौसम का अपने निधारित समय से इतर परिवर्तित होना। जहां पहले अक्टूबर के पहले सप्ताह तक एक मोटे चादर भर की ठंड पड़ने लगती थी वहीं अब यही हालत दिसंबर मध्य तक बनी रहती है। दिसंबर का कड़कड़ाता जाड़ा अब बीते दिनों की बातें हो गई हैं। गर्मी और बरसात के मौसम की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। अब सावन में बारिस की पहली फुहार स्वप्न हो चुकी है। मौसम के इस तरह से आगे पीछे होने से कृषि और स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ा है। एक अनुमान के मुता

मैं खोया उन्ही ख्यालों में...

सुलगती सिगरेट लिए हाथो में था बैठा चांदनी रातों में अंगुलियां उलझा रहा था बालों में जैसे उलझ रही हों उसके बालों में दिखेगी कैसी वह चांदनी के श्वेत प्रकाश में था खोया मै इन्हीं ख्यालों में कभी तो देखूंगा उसको मै पूरनमासी उजालों में बस इसी इंतजार में कट गई जिंदगी जैसे कट जाए कुछ लम्हों में एक दिन छोड़ गई मुझको वह सूनसान अंधेरी राहों में सारे अरमानों को दफ्न किया मैने दिल के अंधेरे कोनों में काश ! न आई होती वह शायद जिंदगी कट जाती कुछ दिन और उजालों में तब भी खोया था उसी ख्यालों में अब भी खोया हूं उसी ख्यालों में बस अंतर इतना आया जीने में तब करता था इंतजार उजाली रातों में अब करता हूं इंतजार अंधेरी रातों में

मुस्कराऊँ कैसे...

चित्र
कल शाम एक तितली मेरे हाथों पर आ बैठी ऐसे अपने दिलों का दर्द बयां करने आई हो जैसे उसके छुअन का अहसास मुझे अब तक है उस मखमली अनुभूति को मैं बताऊँ कैसेे गौर से देखा उसकी आंखों में मायूसी और हजारों दर्द छिपे हों जैसे यह देख रहा नहीं गया मुझसे डरते-डरते पूछा आज तुम इतनी मायूस कैसे इतना कहना था कि वह फट पड़ी अपने दर्द की बाढ़ में मुझे बहा दिया हो जैसे वह बोली मेरे पंखों पंखों को हौले से छूने वाले हजारों फूल पाकिस्तान से लेकर यमन सीरिया सुडान तक रोज कुचले जा रहे दुनिया के गुलों को महकाने वाले मौत का सामान बनते जा रहे बताओ ऐसे में खुश रहूं मै कैसे सीरिया यमन तो दूर की बात है कितने ही ऐसे बिखरे फूल तुम्हारे आस-पास हैं कुछ पेट की ज्वाला बुझाते-बुझाते असमय जिंदगी की जंग हार जाते हैं कुछ अच्छी परवरिश और खाद-पानी के अभाव में खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं बताओ क्या तुम भी देखते रहोगे ऐसे यह बात मेरे दिल को छू गई सोते हुए आदमी को सूई जैसे चुभ गई रात में खुले आसमान के नीचे बैठकर उसकी कही बातों को सोच रहा था इतने में देखा आसमान में टिमटिमाते तारों के आंखों में