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केजरी-मोदी विवाद: हम तुमसे दो नहीं चार कदम आगे

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दिल्ली सचिवालय पर अचानक छापे के बाद अरविंद केजरीवाल का संयम खोना भले ही खराब लगे और उनकी भाषा के गिरे स्तर को उनकी घटिया राजनीति कह कर प्रचारित किया जाए पर इसमें कोई संदेह नजर नहीं आता कि सीबीआई ने छापा पीएमओ के ही इशारे पर ही मारा। इस मामले में उसकी नियति पर भी शक करने के कई बुनियादी प्रमाण हैं।  सीबीआई पिंजरे में बंद तोता है और समय समय पर उसका इस्तेमाल केन्द्र सरकारों द्वारा होता रहा है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। इसको पिंजड़े का तोता कोई और नहीं माननीय उच्चतम न्यायालय कह चुका है । उसने इसे एक स्वायत्त संस्था बनाने की भी पैरवी किया था। बीजेपी जब विपक्ष की भूमिका में थी तो यह हमेशा कांग्रेस पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाती रहती थी, लेकिन जब खुद सत्ता में आई तो उसी सीबीआई को पाक साफ बताने लगी। सीबीआई के थ्योरी में कितने छेद हैं यह इसी बात से पता चलता है  कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस समेत सभी दलों ने कितनी बार व्यापमं महाघोटाले की सीबीआई जांच की मांग की, एक के बाद एक कितनी मौतें हुईं लेकिन अभी तक सीबीआई के हाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दफ्तर तक नहीं पहुंच सक

सहिष्णुता का अपना - अपना राग

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पिछले दिनों दादरी से उठा सहिष्णुता का सवाल ऐसा गरमाया कि इसकी तपिश में देश के कई प्रमुख मुद्दे झुलस गए। दाल, प्याज और सब्जियों के दाम लगातार ऊंचाईयों के नए रिकार्ड बनाते गए पर इस पर कहीं सुगबुगाहट तक सुनने को नहीं मिली। पनियाई दाल खाने वाले ने थोड़ी और पानी मिलाया और चुपचाप देश में असहिष्णुता पर उठी बहस को कान टेक कर सुनने का प्रयास करता रहा। रह रह कर अकेल में मुह टेढ़ा करके अहिष्णुता का सही उच्चारण करने का प्रयास भी कर लेता था, पर उससे यह ठीक से कहना नहीं आया। यह कोई नई बात नहीं, जब ऐसे मुद्दे ने रोटी पानी के मुद्दे को दबाया हो। इसके पहले गाय और मंदिर भी आम आदमी की आवाज को अनसुना करने में अपना योगदान देते रहे हैं | इस बार नया यही रहा कि इसमें हमारे सहित्य की दुनिया के पुरोधा भी कूद पड़े। शायद यही वह बात भी थी, जो राष्ट्रभक्ति के झंडाबदारों को चुभ गई और लगे पाकिस्तान भेजने । यह मत सोचिएगा कि सिर्फ इस देश में सिर्फ एक ही झंडाबरदार है, यहां तो सैकड़ों मिलेंगें, कोई कश्मीर के लिए चीर देने को तैयार है, जिसे सिर्फ कश्मीर में आतंक ही दिखाता रहा है तो कोई उस तबके का नेता अपने