दो प्रेम कविताएं ...

1

नहीं कहता तुम्हें मैं
गुलाब कली
भोर का तारा
या सांझ की लालिमा
तो कारण नहीं
कि दिल सूना है
या मेरा प्यार है धुंधला
बस केवल यही है :सारे उपमान
पड़ चुके हैं धुंधले
जैसे कपड़े घिस-घिस कर
छोड़ देते हैं रंग


मगर क्या तुम
नहीं पहचान पाओगे
अगर कहूं तुम्हें,
कास के फूल जैसा
या शरद की सुबह में
लहराती छरहरी
बजरे की बाली

सभ्यता के इस दौर में
जुही के फूल को भले ही
समझा जाता हो,
सौंदर्य का पैमाना
पर इससे अधिक
सच्चे- प्यारे प्रतीक हैं
कास के फूल
या शरद की सूनी सांझ
में डोलती बजरे बाली
(कुछ अधूरी लाइनें)


2

तुम्हें याद है,
जब हम मिले थे
आखिरी बार
तुम पलट कर
मुस्कराए थे
और मैनें बड़ी सफाई से
गीली आंखें छिपा ली थी
उसके ठीक पहले
हंसे थे हम दोनों
आखिरी बार एक साथ
वह हंसी उठी थी
नाभि के हिस्से से
और निकल गूंज गई
हमारे साथ हंसी थी सड़कें
और फुटपाथ भी
पर वे हंस रहे थे
हमारी नियति पर
उन्हें भी पता था
कि इन बावरों की हंसी
बस आज भर है
तुम्हें याद है या भूल गए
भूल गए हो तो अच्छा ही है
जरूरी नहीं दोनों उस
हंसीन मौसम के
इंतजार में कर दें
उम्र तमाम
तुम हंसो
मैं रोने का तुम्हारा औसत भी
पूरा करता हूं
(अधूरी लाइनें .)


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