दो प्रेम कविताएं ...
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नहीं कहता तुम्हें मैं
गुलाब कली
भोर का तारा
या सांझ की लालिमा
तो कारण नहीं
कि दिल सूना है
या मेरा प्यार है धुंधला
बस केवल यही है :सारे उपमान
पड़ चुके हैं धुंधले
जैसे कपड़े घिस-घिस कर
छोड़ देते हैं रंग
मगर क्या तुम
नहीं पहचान पाओगे
अगर कहूं तुम्हें,
कास के फूल जैसा
या शरद की सुबह में
लहराती छरहरी
बजरे की बाली
सभ्यता के इस दौर में
जुही के फूल को भले ही
समझा जाता हो,
सौंदर्य का पैमाना
पर इससे अधिक
सच्चे- प्यारे प्रतीक हैं
कास के फूल
या शरद की सूनी सांझ
में डोलती बजरे बाली
(कुछ अधूरी लाइनें)
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