अषाढ़ का एक दिन
आसमान में काले-सफेद और सिल्की रंगत वाले बादल छाए हैं | इनके बीच से
इक्का दुक्का पक्षी उड़ रहे हैं | सुबह आंख मीचते हुए उठकर बालकनी में आया
तो समंदर की हवाओं ने माथा चूमकर इस्तकबाल किया |
ये मौसम देखकर बरबस ही कालिदास के मेघदूतम् की लाइन ..."ओ अषाढ़ के पहले बादल." फूट पड़ी | इसके आगे की लाइनें न तो याद हैं और न ही याद करने की कोशिश की कभी | दरअसल गाने या कविता की अगली लाइन याद न होना भी मजेदार होता है कई बार | मेरे जेहन में जब भी ये लाइन कुलबुलाती है ..तो कल्पना की भैंस खूंटा तुड़ाकर रोपनी के लिए तैयार किए जा रहे किसी खेत में पहुंच जाती है | वह पानी से लबालब भरे खेत में खुशी से लोटने लगती है |
अखबार लाया - पहली खबर पीएम इजरायल गए हैं | हथियारों की बड़ी डील हो सकती है | दूसरी चीन ने फिर से भारत को हड़काया | दूसरी जीएसटी..तीसरी ..रेप, चौथी क्रिकेट ...ब्ला ब्ला ब्ला | अंदर के किसी पन्ने पर मिली ..इतने किसानो ने की सुसाइड ... | अब कितनों ने सुसाइड की ..फर्क नहीं पड़ता | गिनती ही तो हैं | मैनें अखबार किनारे फेंका ..| आ गया फिर से फेसबुक पर | वहां भी ये वाद, वो वाद | मन उचट गया तो एक बार फिर खिड़की से बाहर झांका। दूर मंदिर के शिखर पर बैठ मेरी तरफ ताक रहा था | उसके साथ मन थोड़ा मयूर हुआ | एक बार और फेसबुक खोला तो सूरज इब्राह्मोविच ने किसी इंडिन फुटबालर की खबर शेयर की थी | वह खाली समय में धान के खेतों में काम करता है | पढ़कर थोड़ी खुशी मिली | मन मयूरी से धानी-धानी हो गया| महसूस हुआ कि आज तो बस मन धान के खेतों के नाम ही है |
एक सिगरेट जलाई ..तो
मन गुलेरी की कहानी "उसने कहा था" दोबारा पढ़ने को करने लगा | थोड़ी आंखे नम हुई, आत्मा थोड़ी गीली| अंकिता जी ने तस्वीरें भेजी थी उत्तराखंड के धारे की | सब मिलकर एक कोलाज सा बन गया आज दिन का | अषाढ़ में सुकून से सिल्की बादल देखना मतलब देखना भर नहीं होता | उसमें धान के खेत, अपनी जड़े और सूखे से उपजी खेत की दरारें भी होती हैं | अब धान-धान हो रहा तो आदि विद्रोही कहां पीछे रहने वाले -
मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
ये मौसम देखकर बरबस ही कालिदास के मेघदूतम् की लाइन ..."ओ अषाढ़ के पहले बादल." फूट पड़ी | इसके आगे की लाइनें न तो याद हैं और न ही याद करने की कोशिश की कभी | दरअसल गाने या कविता की अगली लाइन याद न होना भी मजेदार होता है कई बार | मेरे जेहन में जब भी ये लाइन कुलबुलाती है ..तो कल्पना की भैंस खूंटा तुड़ाकर रोपनी के लिए तैयार किए जा रहे किसी खेत में पहुंच जाती है | वह पानी से लबालब भरे खेत में खुशी से लोटने लगती है |
अखबार लाया - पहली खबर पीएम इजरायल गए हैं | हथियारों की बड़ी डील हो सकती है | दूसरी चीन ने फिर से भारत को हड़काया | दूसरी जीएसटी..तीसरी ..रेप, चौथी क्रिकेट ...ब्ला ब्ला ब्ला | अंदर के किसी पन्ने पर मिली ..इतने किसानो ने की सुसाइड ... | अब कितनों ने सुसाइड की ..फर्क नहीं पड़ता | गिनती ही तो हैं | मैनें अखबार किनारे फेंका ..| आ गया फिर से फेसबुक पर | वहां भी ये वाद, वो वाद | मन उचट गया तो एक बार फिर खिड़की से बाहर झांका। दूर मंदिर के शिखर पर बैठ मेरी तरफ ताक रहा था | उसके साथ मन थोड़ा मयूर हुआ | एक बार और फेसबुक खोला तो सूरज इब्राह्मोविच ने किसी इंडिन फुटबालर की खबर शेयर की थी | वह खाली समय में धान के खेतों में काम करता है | पढ़कर थोड़ी खुशी मिली | मन मयूरी से धानी-धानी हो गया| महसूस हुआ कि आज तो बस मन धान के खेतों के नाम ही है |
एक सिगरेट जलाई ..तो
मन गुलेरी की कहानी "उसने कहा था" दोबारा पढ़ने को करने लगा | थोड़ी आंखे नम हुई, आत्मा थोड़ी गीली| अंकिता जी ने तस्वीरें भेजी थी उत्तराखंड के धारे की | सब मिलकर एक कोलाज सा बन गया आज दिन का | अषाढ़ में सुकून से सिल्की बादल देखना मतलब देखना भर नहीं होता | उसमें धान के खेत, अपनी जड़े और सूखे से उपजी खेत की दरारें भी होती हैं | अब धान-धान हो रहा तो आदि विद्रोही कहां पीछे रहने वाले -
मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
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