संदेश

अगस्त, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

महत्वाकांक्षाओं की तड़प और उसकी काव्यात्मक यात्रा

चित्र
फिल्म: एट फाइव इन ऑफ्टरनून डायरेक्टर: समीरा मखमलबाफ अभिनेत्री : अफलेह रेजाई अफगानिस्तान बैकग्राउंड पर बनी फिल्म एट फाइव इन ऑफटरनून, वहां की बदहाल हालात की छोटी झलक दिखाती है। एट फाइव इन ऑफटरनून अफगानिस्तान से तालिबान शासन के खत्म होने के बाद के हालात पर बनी संभवत: पहली फिल्म है। जो कि दर्शक को काबुल से शुरू होकर दर्शक को एक पोयटिक जर्नी पर ले जाती है। यह यात्रा महिला अधिकारों से होते हुए तालिबान काल के वीरान खंडहरों तक और कहीं इसके आगे जाती है। दर्शक की यह यात्रा सिर्फ गाइड टूर न होकर राजनीतिक रूप से सचेत और सजग होने का संदेश भी देती है। लेखिका और निर्देशक समीरा मखमलबाफ ने फिल्म की कहानी अपने पिता मोहसिन मखमलबाफ के साथ मिलकर लिखा है। वे फिल्म के सह लेखक हैं। एट फाइव इन ऑफ्टरनून, युवा और बुद्धिमान युवती नाकरेह (अफलेह रेजाई) पर केन्द्रित है। वह अपने कंजर्वेटिव पिता, एक तांगा चालक और असहाय सिस्टर इन लॉ के साथ एक खंडहर में रहती है। वह एकदिन बिना अपने कंजर्वेटिव बाप के बताए काबुल के एक सेक्युलर स्कूल में एडमिशन ले लेती है। जहां नाकरेह को खुलकर बहस करने और दुनिया के बारे में

युद्धरत और धार्मिक जकड़े समाज में महिला की स्थित समझने का क्रैश कोर्स है ‘पेशेंस ऑफ स्टोन’

चित्र
फिल्म : पेशेंस ऑफ स्टोन निर्देशक : अतीक रहीमी अभिनेत्री : गोल्शिफतेह फराहानी  अभिनेता: हामिद जिवासन, मासी मरोत ध र्म से जकड़े किसी पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की स्थिति कितनी दमघोंटू हो सकती है, इसका एक नमूना पेश करती है पेशेंस ऑफ स्टोन | यह अफगान वार ड्रामा फिल्म धूल भरी गलियों और उड़ती गोलियों से होकर मिडिल-इस्ट के सामाजिक तानेबाने की कई परतें उधेड़ती है | फिल्म लगभग 30 साल की एक ऐसी महिला की कहानी है, जिसके पति की उम्र 60 के आसपास है | वह एक मुजाहिद्दीन होता है, लेकिन गर्दन में गोली फंसने से कोमा में है | महिला (गोल्शिफतेह फरहानी) कोमा में पड़े पति को चीनी और पानी का घोल ट्यूब के जरिए देती है | इस बीच, लगातार घर के बाहर बम फट रहे होते हैं ...उसके पास बमुश्किल चीनी और पानी खरीदने के पैसे होते हैं | पुरुष की देखभाल के बाद जो समय बचता है ..उसमें एक पैरालाइज पति से महिला का लंबा मोनोलॉग है | जिसमें वह शादी के दस सालों की घटनाओं और दर्द भरे जीवन को याद करती है | वह इस बात को लेकर शिकायत के अंदाज में बताती है कि 17 साल की उम्र में उसकी एक बहुत अधिक उम्र के व्य

स्त्री का अपरिवर्तनशील चेहरा हुसैन की 'गज गामिनी'

चित्र
स्त्री विमर्श पर फिल्में तो हजारों बन चुकी हैं | उनपर खूब लिखा भी गया है | लेकिन किसी पेंटर के नजरिए से फेमिनिज्म को बहुत कम पर्दे पर उतारा गया है। पिछले दिनों मकबूल फिदा हुसैन की गज गामिनी देखी | गज गामिनी मकबूल फिदा हुसैन की कविता और उसपर बनाई गई पेंटिंग है| जो कि पूरी तरह स्त्री को समर्पित है | हालांकि इसे सिर्फ स्त्री को किया गया ट्रिब्यूट कहना मकबूल के साथ न्याय न होगा | यह फिल्म स्त्री के अलग अलग समय को दर्शाने की ईमानदार कोशिश है जिसमे उसकी एक ही भूमिका है | वह हमेशा से पुरुषों की नजर में मां होती है, बहन, बेटी, प्रेमिका या सुंदरी ही होती है| नहीं होती तो इंसान।  गज गामिनी ऐसी फिल्म है जिसमें न तो कोई हीरो है, न तो विलेन, बिना किसी प्लाट और स्क्रिप्ट के भी इन सबसे लैस है | यह फिल्म ऐसी स्त्री की कहानी है जिसके चेहरे और भूमिका को पुरुषों द्वारा गढ़ा गया है | उसके ये चेहरे समय से परे हैं | फिल्म में दो सदियों को एक काली दीवार के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है | जिसके एक तरफ ज्ञान है ..जिसको कालिदास करते हैं और दूसरी तरफ मतलब दूसरी सदी साइंस ..जिसको की साइंटिस्ट।  पतझड़ के बाद