एक प्रजाति के तौर पर मानव की सफलता

एक प्रजाति के तौर पर मानव की सफलता क्या हो सकती है ? इसको दो हिस्सों में कहा जा सकता है : पहला ब्रह्मांड से मनुष्य का एक एेसा संपर्क स्थापित हो कि संपूर्ण सृष्टि में उसको अपनी हिस्सेदारी का अनुभव हो। यह सर्वोच्च लक्ष्य है। दूसरा और निम्नतम लक्ष्य यह होगा कि प्रत्येक मनुष्य को स्वाभिमान के साथ एक स्वस्थ और जीवन जीने की पर्याप्त सुविधाएं प्राप्त हों। जहां निम्नतम और सर्वोच्च दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कोशिशें होती रहती हैं वहां सभ्यता होती है। आज के इतिहास को हम धिक्कार सकते हैं कि अभी तक एक उपर्युक्त निम्नतम लक्ष्य को भी मानव समाज ने प्राप्त नहीं किया है। इक्कीसवीं के प्राक् काल में हम पाते हैं कि निम्नतम लक्ष्य ओर सर्वोच्च लक्ष्य दोनों स्तरों पर विचार की कमी हो गई है। आज लगता है कि किसी भी मानवीय समस्या के हल के लिए मनुष्य के पास बुद्धि नहीं है। पचास साल पहले स्थिति बेहतर थी। मनुष्य के विचार- संसार में बहुत सारे सकारात्मक तत्व थे जिनके चलते लगता था कि मनुष्य अपने निम्नतम लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। गरीबी, बीमारी और अपराध से मुक्त एक विश्वव्यापी समाज व्यवस्था की संभावना तत्कालीन विचार संसार में दिखाई पड़ती थी। गरीबी, बीमारी और अपराध की व्यापकता के कारण सामाजिक मनुष्य का सबसे बड़ा काम जीवित और सुरक्षित रहना हो जाता है। केवल जीवित रहने के लिए जीवन संग्राम करते रहना एक निकृष्ट स्थिति है। एक धनी वर्ग या धनी देश का होने से इस स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता है। कारण, आज के विषमतापूर्ण विश्व समाज में एक हिस्से का जीवन संग्राम पेट भरने के लिए होता है तो दूसरे हिस्से का जीवन संग्राम पेटू बने रहने के लिए। इस निकृष्ट स्थिति से मनुष्य जाति को ऊपर उठाने के काम में इस वक्त के सारे शास्त्र अपनी असमर्थता जाहिर कर रहे हैं।
(महान समाजवादी चिंतक और नेता किशन पटनायक की किताब 'विकल्पहीन नहीं है दुनिया' से )

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