क्रोध के कितने रंग
गुस्सा जीव का एक स्वाभाविक भाव है। आम तौर पर हर किसी का गुस्सा एक सा ही दिखता है। लेकिन असलियत में यह अपने भीतर कई सारे रंग और वजहें समेटे हुए होता है। गुस्से को हानिकारक मानने की एक सामान्य सी धारणा है।मानोविज्ञान की प्रोफेसर लीजा फील्डमैन का यह लेख गुस्से या क्रोध की कई सारी परतें खोलता है। गुस्से पर प्रियदर्शन की एक कविता की कुछ पंक्तियां हैं- जो इसके सबसे अधिक दिखने वाले लक्षण को बयां करती हैं। बहुत सारी चीज़ों पर आता है गुस्सा / सबकुछ तोड़फोड़ देने, तहस-नहस कर देने की एक आदिम इच्छा उबलती है/ जिस पर विवेक धीरे-धीरे डालता है ठंडा पानी कुछ देर बचा रहता है धुआं इस गुस्से का / तुम बेचैन से भटकते हो, देखते हुए कि दुनिया कितनी ग़लत है, ज़िंदगी कितनी बेमानी लिसा फील्डमैन बैरट -------------------------- कड़वाहट, द्वेष और रोष। गुस्से की असंख्य किस्में हैं। कुछ हल्की होती हैं और कुछ रुखे और शक्तिशाली जैसे कि प्रचंड क्रोध। भिन्न भिन्न गुस्से की तीव्रता के साथ उद्देश्य भी अलग-अलग होते हैं। यह चीखते हुए बच्चे पर सामान्य उत्तेजना के रूप में होता है और राजनीतिक प्रतिद्वंदी से